पृथ्वी का इतिहास
पृथ्वी का इतिहास व पृथ्वी पर जीवन विकास
पृथ्वी का इतिहास व जीवन विकास |
सूर्य से दुरी के क्रम में पृथ्वी तीसरा ग्रह हैं, पृथ्वी नाम पौराणिक कथाओं पर आधारित है जिसका सम्बन्ध “महाराजा पृथु” से हैं, अंग्रेजी में इसे अर्थ (Earth) के नाम से जाना जाता हैं, “अर्थ” जर्मन भाषा का शब्द हैं तथा इस शब्द का साधारण मतलब ग्राउंड हैं। पृथ्वी ५वां सबसे बड़ा और सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह हैं जिस पर जीवन हैं।
पृथ्वी का निर्माण
पृथ्वी का निर्माण लगभग ४.६ अरब वर्ष पूर्व हुआ था तथा इस घटना के १ अरब वर्ष पश्चात् पृथ्वी पर जीवन का विकास शुरू हो गया था| वैज्ञानिकों की रिसर्च के अनुसार पृथ्वी पर (४.६ बिलियन वर्ष पूर्व) लगभग इसी समय ही पुरे सौरमंडल की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी का निर्माण गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सूर्य के आस-पास घूर्णन करते हुए गैस तथा धूल के सम्मिश्रण से हुआ। पृथ्वी में मध्य कोर, रॉकी धातु और एक ठोस क्रस्ट मौजूद हैं।
वैज्ञानिकों का मानना हैं कि ४ बिलियन वर्ष पहले हमारी धरती का ज्यादातर हिस्सा खौलते हुए लावा के समान था, जो बाद में ठंडा होता गया और धरती की ऊपरी सतह का निर्माण हुआ। उसके पश्चात् पृथ्वी के जैवमंडल में काफी परिवर्तन हुआ तथा समय बीतने के साथ-साथ ओजोन परत का निर्माण हुआ जिसने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ मिलकर पृथ्वी पर आने वाले हानिकारक सौर विकिरणों को रोककर धरती को रहने योग्य बनाया।
पृथ्वी का द्रव्यमान ६.५६९११०२१ टन हैं, पृथ्वी बृहस्पति के समान गैसीय ग्रह नहीं हैं बल्कि एक पथरीला ग्रह हैं। पृथ्वी सभी चार भौमिक ग्रहों में आकार और द्रव्यमान में सबसे बड़ी हैं, अन्य ३ भौमिक ग्रह- बुध, शुक्र, और मंगल हैं। इन सभी ग्रहों में पृथ्वी का घनत्व, गुरुत्वाकर्षण, चुंबकीय क्षेत्र और घूर्णन सबसे ज्यादा हैं और पृथ्वी न केवल मनुष्यों का अपितु लाखों प्रजातियों का भी घर हैं।
ऐसा माना जाता हैं कि पृथ्वी सौर निहारिका के अवशेषों से अन्य ग्रहों के साथ ही बनी हैं, पृथ्वी का अंदरूनी भाग गर्मी की वजह से पिघल गया तथा लोहे जैसे भारी तत्त्व पृथ्वी के केंद्रीय भाग में पहुंच गए। लोहा और निकिल जैसे धातु गर्मी से पिघल कर द्रव्य में बदल गए और इनके घूर्णन से पृथ्वी दो ध्रुवों वाले विशाल चुम्बक में बदल गई। बाद में पृथ्वी पर महाद्वीपीय विवर्तन जैसे भू-वैज्ञानिक घटनाएं हुई, जिनसे पृथ्वी पर महाद्वीप, महासागर तथा वायुमंडल आदि का निर्माण हुआ।
पृथ्वी का प्रारंभिक स्वरूप |
पृथ्वी कैसे बनी आग का गोला?
आज से लगभग ४ बिलियन साल पहले अन्तरिक्ष में कई गैसों के मिश्रण से एक बहुत ही जोरदार धमाका हुआ। इस धमाके से एक बहुत ही बड़ा आग का गोला बना, जिसे हम सूर्य के नाम से जानते हैं। इस धमाके के कारन इसके चारों और धूल के कण फ़ैल गए। गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण ये धूल के कण छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों में बदल गए। धीरे-धीरे ये टुकड़े भी गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण आपस में टकराकर एक दूसरे के साथ जुड़ने लगे। इस तरह हमारे सौर मंडल का जन्म हुआ।
कई मिलियन साल तक गुरुत्वाकर्षण शक्ति ऐसे पत्थरों और चट्टानों को धरती बनाने के लिए जोड़ती रही। उस समय १०० से ऊपर ग्रह सौर मंडल में सूर्य का चक्कर लगा रहे थे। चट्टानों के आपस में टकराने के कारण धरती एक आग के गोले के रूप में तैयार हो रही थी जिसके फलस्वरूप लगभग ४.५४ बिलियन साल पहले धरती का तापमान लगभग १२०० डिग्री सेलसियस था।
अगर धरती पर कुछ था तो उबलती हुयी चट्टानें, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और जल वाष्प। एक ऐसा माहौल था जिसमे हम चंद पलों में दम घुटने से मर जाते। उस समय कोई भी सख्त सतह नहीं थी, कुछ था तो बस ना ख़त्म होने वाला उबलता लावा।
चाँद कैसे बना?
उसी समय एक नया ग्रह जिसका नाम थिया (Theia), धरती की तरफ बढ़ रहा था। इसका आकार मंगल ग्रह जितना था। इसकी गति ५० कि.मी./ सेकंड थी। जोकि बन्दूक से चली हुयी गोली से बीस गुना ज्यादा है। जब यह धरती की सतह से टकराया तो एक बहुत बड़ा धमाका हुआ, जिससे कई ट्रिलियन कचड़ा (Debris) धरती से बहार निकल गया और वह ग्रह धरती में विलीन हो गया।
कई हजार साल तक गुरुत्वाकर्षण अपना काम करती रही और धरती से निकले हुए कण कई हजार साल तक इकठ्ठा कर धरती के इर्द-गिर्द एक चक्कर बना दिया। इस चक्कर से एक गेंद बनी, जिसे हम चाँद कहते हैं। ये चाँद उस समय 22000 कि.मी. दूर था, जबकि आज ये 400000 कि.मी. दूर है। दिन जल्दी बीत रहे थे लेकिन धरती में बदलाव धीरे-धीरे आ रहे थे।
पृथ्वी की त्रिज्या और सूर्य से दूरी
पृथ्वी का अर्धव्यास (त्रिज्या) लगभग ६३७१ किलोमीटर हैं, जो कि आकार के आधार पर सौरमण्डल में पांचवा सबसे बड़ा पिंड हैं। पृथ्वी और सूर्य के बीच की १५० मिलियन किलोमीटर की दूरी को एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट कहा जाता हैं तथा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में लगभग ८.३ मिनट का समय लगता हैं।
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पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी की आंतरिक संरचना शल्कीय रूप में अर्थात प्याज के छिलको के समान परत रूप में हैं, इन परतों की मोटाई का सीमांकन रासायनिक एवं यांत्रिक विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता हैं। पृथ्वी की मुख्य रूप से चार परत हैं। इसके सबसे अंदर इसका केंद्र हैं जो की क्रस्ट तथा मेटल से घिरा हुआ हैं, सबसे बाहर की परत भूपटल के रूप में हैं। पृथ्वी का आंतरिक कोर जो के लोह और निकेल से हैं, उसका अर्धव्यास १२२१ किलोमीटर हैं, इसका तापमान १०८३०°F अर्थात ६०००°C होता हैं। इसके ऊपर २२१० किलोमीटर मोटी परत हैं, जिसका निर्माण भी लोह तथा अन्य विभिन्न रसायनों से हुआ हैं, बाहरी कोर और क्रस्ट के बीच में मेटल वाली सबसे मोटी परत होती हैं। पृथ्वी का बाहरी कोर लगभग ३० किलोमीटर मोटा होता हैं।
पृथ्वी की सतह
पृथ्वी पर भी मंगल और बृहस्पति ग्रहों के समान ज्वालामुखी, पहाड़ और घाटियाँ स्थित हैं। पृथ्वी का स्थल मंडल (Lithosphere) जिसमें क्रस्ट और ऊपरी मेटल हैं, जो के विभिन्न बड़ी प्लेट्स में बटा हुआ हैं और लगातार गति करता रहता हैं। जैसे उत्तरी अमेरिका प्लेट प्रशांत महासागर बेसिन के ऊपर से गुजरता हैं। इस समय प्लेट की गति लगभग उतनी ही होती हैं जितनी किसी व्यक्ति के नाखून बढ़ने की। जब एक प्लेट, दूसरे प्लेट के मार्ग में आती हैं तो उनके टकराने पर या आपस में घर्षण से भूकंप की उत्पत्ति होती हैं तथा जब कभी प्लेट एक दूसरे पर चढ़ जाती हैं तो पहाड़ो का निर्माण होता हैं।
पृथ्वी की आकृति
जैसा कि हम सभी जानते हैं पृथ्वी की आकृति गोल व धुर्वों पर चपटी हैं, पृथ्वी का सबसे उच्चतम बिंदु माउन्ट एवरेस्ट जिसकी ऊँचाई ८८४८ मी. हैं तथा सबसे निम्नतम बिंदु प्रशांत महासागर में स्थित मारियाना खाई (Mariana Trench), जिसकी समुन्द्र तल से गहराई १०,९११ मी. हैं|। पृथ्वी के कुल आयतन का ०.५% भाग में भूपर्पटी (Crust) तथा ८३% भाग में मैंटल ( Mantle) विस्तृत हैं और १६% भाग क्रोड हैं। पृथ्वी का निर्माण विभिन्न तत्वों जैसे आयरन (३२.१%), ऑक्सीजन (३०.१%), सिलिकॉन (१५.१%), मैग्नीशियम (१३.९%), सल्फर (२.९%), निकिल (१.८%), कैलसियम (१.५%), ऐल्युमिनयम (१.४%) से हुआ हैं, इसके अलावा १.२% अन्य तत्वों का भी योगदान हैं। क्रोड का निर्माण लगभग ८८.८% आयरन से हुआ हैं। भूरसायनशास्त्री एफ. डब्ल्यू. क्लार्क के अनुसार पृथ्वी की भूपर्पटी में लगभग ४७% ऑक्सीजन हैं।
पृथ्वी के केंद्र के क्षेत्र को “केंद्रीय भाग” कहते हैं जो कि सबसे बड़ा क्षेत्र हैं यह निकिल और फ़ेरस का बना होता हैं। इसका औसत घनत्व १३ ग्राम/सेमी3 हैं। पृथ्वी का केंद्रीय भाग सम्भवतः द्रव/ प्लास्टिक अवस्था में हैं। यह पृथ्वी का कुल आयतन का १६% भाग घेरे हुए हैं, पृथ्वी का औसत घनत्व ५.५ ग्राम/ सेमी.3 एवं औसत त्रिज्या लगभग ६३७० किमी. हैं तथा पृथ्वी की गहराई में जाने पर प्रति ३२ मीटर में तापमान 1°C बढ़ता जाता हैं।
पृथ्वी का तल असमान हैं, तल के ७०.८% भाग पर जल हैं, जिसमें अधिकांश महासागरीय नितल समुंद्री स्तर के नीचे हैं। पृथ्वी पर लगभग ९७% पानी महासागरों में मौजूद हैं, लगभग सभी ज्वालामुखी इन्हीं महासागरों में हैं।
पृथ्वी पर कहीं विशाल पर्वत, कहीं उबड़- खाबड़ पठार तो कहीं पर उपजाऊ मैदान हैं। महाद्वीप और महासागरों को प्रथम स्तर की स्थलाकृति माना जाता हैं जबकि पर्वत, पठार घाटी निचले स्तरों के अंतर्गत रखे जाते हैं। पृथ्वी का तल समय काल के दौरान प्लेट टेक्टोनिक्स और क्षरण की वजह से लगातार परिवर्तित होता रहता हैं। प्लेट टेक्टोनिक्स की वजह से तल पर हुए बदलाव पर मौसम, वर्षा, उष्मीय चक्र और रासायनिक परिवर्तनों का असर पड़ता हैं। हिमीकरण, तटीय क्षरण, प्रवाल भित्तियों का निर्माण और बड़े उल्का पिंडो के पृथ्वी पर गिरने जैसे कारकों की वजह से भी पृथ्वी के तल पर परिवर्तन होते हैं।
पृथ्वी प |
पृथ्वी की गतियां
पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती हैं, जिसकी दो प्रकार की गतियां हैं:-
१- घूर्णन:- पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता हैं, पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूर्णन करती हैं और एक घूर्णन पूरा करने में २३ घंटे, ५६ मिनट और ४.०९१ सेकंड का समय लेती हैं इसी से दिन व रात होते हैं।
२- परिक्रमण:- पृथ्वी सूर्य के चारों एक अंडाकार पथ पर ३६५ दिन, ५ घंटे, ४८ मिनट व ४५.५१ सेकंड में एक चक्कर पूरा करती हैं, जो पृथ्वी की परिक्रमण गति हैं तथा पृथ्वी की इसी गति की वजह से ऋतु परिवर्तन होता हैं। पृथ्वी की इस गति के कारण ६ घंटे जोड़ जोड़कर ४ सालों में जो एक दिन बढ़ता हैं वो हर चौथे साल फरवरी में जोड़ दिया जाता हैं। वही फरवरी का महीना २९ दिन का होता हैं, इसी को लिप वर्ष कहा जाता हैं।
पृथ्वी के उपग्रह
पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा हैं और यह सौरमंडल का पाँचवा सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह हैं, जिसका व्यास पृथ्वी का १/४ और द्रव्यमान १/८१ हैं।
पृथ्वी की धुरी और वायुमंडल
पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5° झुकी हुई हैं, सूर्य के चारों और चक्कर लगाते समय भी पृथ्वी अपने अक्ष पर इसी प्रकार झुकी हुई रहती हैं। पृथ्वी के इसी झुकाव के कारण ही मौसम में बदलाव आते हैं, साल में एक समय पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की और झुका हुआ होता हैं, जिसके कारण सूर्य का प्रकाश उत्तरी गोलार्ध में बहुत अधिक पहुचँता हैं और यहां ग्रीष्म काल होता हैं। दक्षिणी गोलार्ध और सूर्य की दुरी इस समय अधिक होती हैं इसलिए यहां सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं और तापमान कम रहता हैं जिससे दक्षिणी गोलार्ध में शीत ऋतु होती हैं। ठीक ६ महीने के बाद यह स्थिति विपरीत हो जाती हैं तथा वसंत ऋतु के समय दोनों गोलार्द्धों में लगभग समान प्रकाश आता हैं।
पृथ्वी के भूतल के आस-पास एक बहुत सघन वायुमंडल हैं, जिसमें लगभग ७८.०९% नाइट्रोजन, २०.९५% ऑक्सीजन एवं १% बाकी अन्य गैस हैं। इन अन्य गैसों में आर्गन, कार्बनडाई ऑक्ससाइड, और निऑन आदि हैं। यह वायुमंडल पृथ्वी के जलवायु, मौसम आदि को प्रभावित करते हैं तथा यह वायुमंडल आम लोगों को कई तरह की घातक किरणों से बचाता हैं और इसी के साथ यह वायुमंडल पृथ्वी को छोटे उल्काखंडो (Materoids) आदि से बचाता हैं। दरअसल पृथ्वी की तरफ आते हुए मेटोर्स अक्सर वायुमंडल से घर्षित होते हुए रास्ते में ही जल के समाप्त हो जाते हैं।
कैसे शुरू हुआ जीवन?
3.8 बिलियन साल पहले धरती पर पानी भी पहुँच चुका था और ज्वालामुखी फूट-फूट कर छोटे-छोटे द्वीप बना रहे थे। उल्काओं की बारिश अभी भी रुकी नहीं थी। पानी और नमक के इलावा ये उल्का और भी कुछ ला रहे थे। कुछ ऐसे खनिज पदार्थ जो जीवन कि उत्पत्ति करने वाले थे। ये खनिज पदार्थ थे कार्बन और एमिनो एसिड। ये दोनों तत्व पृथ्वी पर पाए जाने वाले हर जीव जंतु और पौधों में पाए जाते हैं।
ये उल्का पानी में 3000 मीटर नीचे चले जाते थे। जहाँ सूर्य की किरणें पहुँच नहीं पाती थीं। धीरे धीरे ये उल्कापिंड ठन्डे होकर जमने लगे। इन्होंने एक चिमनी का आकर लेना शुरू कर दिया और ज्वालामुखी में पड़ी दरारों में पानी जाने से धुआं इन चिमनियों से निकलने लगा और पानी एक केमिकल सूप बन गया। इसी बीच पानी में समाहित केमिकलों के बीच ऐसा रिएक्शन हुआ जिससे माइक्रोस्कोपिक जीवन का प्रारंभ हुआ। पानी में सिंगल सेल बैक्टीरिया उत्पन्न हो चुके थे।
बिना पौधों के कहाँ से आई ऑक्सीजन?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें 3.5 बिलियन साल पहले जाना पड़ेगा। ये वो समय था जब समुद्र कि निचली सतह पर चट्टानों जैसे पड़े पत्ते उग रहे थे। इन्होने एक कॉलोनी बना ली थी और इन पर जीवित बैक्टीरिया थे। इन पत्तों को स्ट्रोमेटोलाइट ( Stromatolite ) कहा जाता है। ये बैक्टीरिया सूर्य की रौशनी से अपना भोजन बनाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कहते हैं।
जिसमे यह सूर्य की किरणों कि ताकत से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को ग्लूकोस में बदल देता है। जिसे शुगर भी कहा जाता है। इसके साथ ही ये एक सहउत्पाद (Byproduct ) छोड़ता है जोकि ऑक्सीजन गैस होती है। समय कि गति के साथ सारा सागर ऑक्सीजन गैस से भर गया। ऑक्सीजन के कारण पानी में मौजूद लोहे को जंग लगी, जिससे लोहे के अस्तित्व का पता चला। लहरों के ऊपर ऑक्सीजन वायुमंडल में प्रवेश कर चुकी थी। यही वो गैस है जिसके बिना धरती पर जीवन असंभव है।
एक अद्भुत द्वीप से बने दो महाद्वीप
2 बिलियन साल तक ऑक्सीजन गैस का स्तर बढ़ता रहा। धरती के घूमने का समय भी कम होता रहा, दिन बड़े होने लगे। 1.5 बिलियन साल पहले दिन 16 घंटे के होने लगे थे। कई मिलियन साल बाद सागर के नीचे दबी धरती की उपरी सतह कई बड़ी प्लेटों में बंट गयी। धरती के नीचे फैले लावा ने उपरी सतह को गतिमान कर दिया। इस गति के कारण सारी प्लेटें आपस में जुड़ गयी और बहुत विशाल द्वीप तैयार हुआ।
लगभग 400 मिलियन साल के समय में धरती का पहला सूपरकॉन्टिनेंट तैयार हुआ जिसका नाम था रोडिनिया ( Rodinia )। तापमान घट कर 30 डिग्री सेल्सियस हो चुका था। दिन बढ़ कर 18 घंटे के हो चुके थे। धरती के हालात मंगल ग्रह की तरह थे। 750 मिलियन साल पहले धरती के अन्दर से एक ऐसी शक्ति निकली जिसने धरती कि सतह को दो टुकड़ों में बाँट दिया। और यह शक्ति थी ‘ताप’ जो कि धरती के नीचे पिघले हुए लावा से पैदा हुयी थी। जिसके कारण धरती कि उपरी सतह कमजोर पड़ती गयी और धीरे-धीरे दोनों सतहें एक दूसरे से दूर होती चली गयीं। जिससे दो महाद्वीप बने :- साइबेरिया और गोंडवाना।
पृथ्वी कैसे बनी बर्फ का गोला
धरती के ऊपर जवालामुखी फटने का सिलसिला अभी जारी था। ज्वालामुखी के साथ निकलने वाले लावा के साथ निकलती थीं गैसें और हानिकारक कार्बन-डाइऑक्साइड। वातावरण में फैली कार्बन डाइऑक्साइड ने सूर्य की किरणों को सोखना शुरू कर दिया। जिससे धरती का तापमान बढ़ने लगा। बढ़ते तापमान के कारन सागर के जल से बदल बने और कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति में मिल कर अम्ल वर्षा (Acid Rain) की।
बारिश के साथ आने वाली कार्बन-डाइऑक्साइड को चट्टानों और पत्थरों ने सोख लिया। वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड ख़त्म हो जाने से कुछ हजार सालों में तापमान घट कर -50 डिग्री सेल्सियस हो गया। इस स्थिति वाली धरती को बर्फ की गेंद ( Snow Ball ) भी कहा जाता है। चारों तरफ बर्फ हो जाने के कारन सूर्य की किरणें धरती से परावर्तित ( Reflect ) हो जाती थीं और तापमान बढ़ नहीं पाता था। बर्फ और बढती चली जा रही थी।
बर्फ पानी में कैसे बदली
धरती का केंद्र अभी भी गर्म था। ज्वालामुखियों का फटना भी जारी था। लेकिन बर्फ इतनी ज्यादा हो चुकी थी कि ज्वालामुखी से निकलने वाली वाली गर्मी उसे पिघला नहीं पा रही थी। परन्तु अब कोई ऐसा स्रोत नहीं था जो कार्बन डाइऑक्साइड को सोख पाता। सारे चट्टान और पत्थर बर्फ के नीचे दब चुके थे। एक बार फिर कार्बन डाइऑक्साइड ने अपनी ताकत दिखाई और सूरज की गर्मी को सोखा कर बर्फ को पिघलने पर मजबूर कर दिया। अब तक दिन भी 22 घंटों के हो गए थे।
किस कारण हुआ भूमि पर जीवन संभव
बर्फ पिघलते समय सूर्य से आने वाली पराबैंगनी हानिकारक किरणों से एक केमिकल रिएक्शन हुआ, जिससे पानी में से हाइड्रोजन परऑक्साइड बनी और उसके टूटने से ऑक्सीजन। यही ऑक्सीजन गैस 50 कि.मी. ऊपर वातावरण में पहुंची, तो वह भी एक केमिकल रिएक्शन हुआ, जिससे ओजोन नाम की एक गैस बनी जो सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों को रोकने लगी। जिसने जीवन कि शुरुआत को एक आधार दिया। अगले 150 मिलियन साल तक इस गैस की परत काफी मोटी हो गयी। इसके साथ ही पेड़-पौधे अस्तित्व में आये और ऑक्सीजन की मात्रा और बढ़ने लगी।
पृथ्वी पर मानवता की उपस्थिति
यह माना जाता है कि धरती पर मनुष्य प्रजाति के जीवन की शुरूआत प्रारंभिक हिमयुग से हुई, जब बैल, हाथी और घोड़े का भी जन्म हुआ। किंतु अब यह प्रतीत होता है कि यह घटना लगभग 26 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में घटित हुई होगी।
प्रारंभिक मानवों के जीवाश्म भारत में नहीं पाये गये हैं। प्रारम्भिक मानव की उपस्थिति का एक संकेत पत्थर के औजारों से प्राप्त होता है जो द्वितीय हिमाच्छादन में जमा किये हुए माने जा सकते है, जो लगभग 2,50,000 ई.पू. पुराने माने जाते हैं। हालांकि बोरी (महाराष्ट्र) से हाल में प्राप्त कलाकृतियों से ज्ञात होता है कि प्रारंभिक मनुष्य का उदय 1.4 मिलियन वर्षों पूर्व हुआ था। वर्तमान में ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में सभ्यता का विकास अफ्रीका के पश्चात हुआ, यद्यपि उपमहाद्वीप की चट्टानी प्रौद्योगिकी का विकास भी उसी तरह हुआ था जैसा कि अफ्रीका में। भारत में प्रारंभिक मानव पत्थर से बने नुकीले हथियारों का उपयोग करते थे; जो सिंधु, गंगा, यमुना नदी के जलोढ़ मैदानों को छोड़कर लगभग सारे भारत में पाये गये हैं। पत्थर से बने नुकीले हथियार और नुकीले कंकर शिकार और काटने के अतिरिक्त भी कई उद्देश्यों से उपयोग में लाये जाते थे। इस दौर में मनुष्य केवल शिकार पर जीता था और उसे अपने भोजन को संग्रहित करने का संघर्ष करना पड़ता था। उसके पास कृषि और भवन निर्माण का भी ज्ञान नहीं था। सामान्यत यह माना जाता है कि यह चरण 9000 ई.पू. तक जारी रहा।
कभी सोचा है गुलाबी धरती के बारे में
जी हाँ, सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। पानी में से पहली मछली टिक टेलिक बाहर आने कि कोशिश कर रही थी। 15 मिलियन सालों में इसने धरती को अपना निवास स्थान बना लिया। इसके साथ ही ड्रैगन फ्लाई का जन्म हुआ और कई और जीव बनने लगे। ऑक्सीजन कि मात्र ज्यादा होने के कारण इनकी हड्डियाँ और मांसपेशियां बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहीं थीं। तभी अचानक वातावरण में बदलाव आया। ।
250 मिलियन साल पहले साइबेरियन मैदानों में अचानक लावा धरती से बहार निकलने लगा। और वहां के सभी जीव मर गए। गोंडवाना महाद्वीप में ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो। यहाँ तापमान लगभग 20 डिग्री सेल्सियस था। अचानक वहां राख गिरनी शुरू हो गयी। जो कि 16000 कि.मी. दूर फटे ज्वालामुखी की थी। उस ज्वालामुखी से सल्फर डाइऑक्साइड निकली। और बारिश में वो गैस मिल कर सल्फ्युरिक एसिड बन गयी। जिसने सब कुछ जला दिया। जिसके कारण यहाँ भी सभी जीव जंतु मारे गए। इस से कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ गयी। तापमान बढ़ गया और पानी सूख गया। भूमि पर जीवन ख़त्म था।
सागर गुलाबी होने लगा था। सब कुछ गायब हो चुका था न पेड़ पौधे थे न जीव जंतु। सागर में कुछ था तो बाद गुलाबी शैलाव (Algae)। गर्म वातावरण और गरम सागर में बिना ऑक्सीजन अगर कोई चीज बच सकती थी वो था शैलाव (Algae)। सागर के पानी में मीथेन गैस के बुलबुले निकलने लगे। अभी तक यह गैस जमी हुयी थी पर सागर के तापमान के बढ़ने से यह पिघल कर बहार आने लगी। यह गैस कार्बन-डाइऑक्साइड से 20 गुना जहरीली है। सब कुछ ख़त्म हो गया था और धरती फिर उसी स्थिति में थी जिसमे उस समय से 250 मिलियन साल पहले थी।
पृथ्वी से संबंधित कुछ तथ्य
★ २२ अप्रैल १९७० को सबसे पहले अमेरिका में पृथ्वी दिवस मनाया गया, जिसके बाद आज पूरी दुनिया में मनाया जाता हैं।
★ पृथ्वी सूर्यमण्डल का एकलौता और ब्रह्मंड में अभी तक का ज्ञात एक ऐसा उपग्रह हैं जिस पर जीवन हैं।
★ पृथ्वी पर कुल ५०० ऐसे सक्रिय ज्वालामुखी हैं जिनसे पृथ्वी की सतह का ८०% निचले और ऊपर के भाग का निर्माण हुआ हैं।
★ पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पर्वतों का १५००० मीटर से ऊँचा होना संभव नहीं हैं।
★ २.५ करोड़ साल से धरती के सारे महाद्वीप गति कर रहें हैं, यह गति टैकटोनिक प्लेटों की निरंतर गति के कारण हो रहीं हैं, प्रत्येक महाद्वीप अलग – अलग चाल से गति कर रहा हैं, जैसे प्रशांत प्लेट ४ सेंटीमीटर प्रति वर्ष जबकि उत्तरी अटलांटिक प्लेट १ सेंटीमीटर प्रति वर्ष गति करती हैं।
★ पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक जीव में कार्बन हैं।
★ पृथ्वी के सारे मनुष्य १ वर्ग किलोमीटर के घन में एक साथ रह सकते हैं, क्योंकि यदि हम १ वर्ग मीटर में एक व्यक्ति को खड़ा करें तो १ वर्ग किलोमीटर में १० लाख व्यक्ति खड़े हो सकते हैं।
★ पृथ्वी का ताप स्रोत केवल सूर्य ही नहीं हैं, बल्कि धरती का अंदरूनी भाग पिघले हुए पदार्थों से बना हुआ हैं जो की पृथ्वी के अंदरूनी तापमान को स्थिर रखता हैं। पृथ्वी के अंदरूनी भाग का तापमान ५०००°-७०००° सेल्सियस हैं जो कि सूर्य की सतह के बराबर हैं।
एक वैज्ञानिक खोज के आधार पर ये अनुमान लगाया गया हैं की आज से ६.५ करोड़ साल पहले सारे महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, वैज्ञानिको का मानना हैं कि “पृथ्वी पर एक उल्का पिंड के गिरने से निरंतर ज्वालामुखियों और ताकतवर भूकम्पों के कारण यह महाद्वीप आपस में अलग हुए इसी कारण धरती से डायनासोर्स का अंत हुआ| सभी जुड़े हुए महाद्वीपों को वैज्ञानकों ने “पैंजिया” नाम दिया हैं।”
★ पृथ्वी पर प्रतिदिन ४५०० बादल गरजते हैं।
★ पृथ्वी आकाशगंगा का एकलौता ऐसा ग्रह हैं जिसमें टैकटोनिक प्लेटों की व्यवस्था हैं।
★ लगभग प्रत्येक वर्ष ३०,००० बाहरी अंतरिक्ष के पिंड पृथ्वी के अंदर प्रवेश करते हैं जिनमें अधिकतम पृथ्वी के वायुमण्डल में पहुंचकर घर्षण के कारण जलने लगते हैं जिन्हें हम “टूटता तारा” कहते हैं।
★ सामान्य तौर पर यह माना जाता हैं कि शुक्र, सौरमंडल का सबसे चमकीला ग्रह हैं, लेकिन यदि एक निश्चित दुरी से सौर मंडल के सभी ग्रहों को देखा जाये तो धरती सबसे ज्यादा चमकीली नजर आएगी। ऐसा इसलिए होता हैं क्योंकि धरती का पानी सूर्य के प्रकाश को परिवर्तित कर देता हैं जिससे पृथ्वी एक निश्चित दुरी से चमकीली नजर आती हैं।
★ मनुष्य के द्वारा १९८९ में रूस में सबसे ज्यादा गहराई वाला गड्डा खोदा गया था जिसकी गहराई १२.२६२ किलोमीटर थी।
★ पृथ्वी की सतह का सिर्फ ११% हिस्सा ही भोजन उत्पादित करने के लिए उपयोग किया जाता हैं।
★ पृथ्वी पूरी तरह से गोल नहीं हैं, बल्कि इसके भू-मध्य रेखीय और ध्रुवीय व्यासों में ४१ किलोमीटर की फर्क हैं, पृथ्वी ध्रुवों पर थोड़ी चपटी (प्लेन) जबकि भू-मध्य रेखा से थोड़ी सी बाहर की तरफ उभरी हुई हैं।
★ चाँद समेत कई और ग्रह और उपग्रह हैं जिन पर पानी मौजूद हैं, पर धरती ही एक ऐसा पिंड हैं जहाँ पानी ठोस, द्रव और गैस तीनों अवस्थाओं में पाया जाता हैं।
★ एक अनुमान के अनुसार २५ करोड़ साल बाद पृथ्वी अपने अक्ष पर वर्तमान से भी कम गति से घूर्णन करेगी जिसके फलस्वरूप भविष्य में दिन २५.५ घंटो का होगा।
★ पृथ्वी अपने अक्ष पर १६०० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूर्णन कर रहीं हैं, जबकि सूर्य के चारों ओर २९ किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चक्कर लगा रहीं हैं।
★ पृथ्वी के अलग-अलग स्थान पर गुरुत्वाकर्षण अलग तरह से कार्य करता हैं, इसका कारण यह हैं कि सभी स्थानों की धरती के केंद्र दूर भिन्न-भिन्न हैं इसी कारण भू-मध्य रेखा पर आपका वजन धुर्वो से थोड़ा ज्यादा होगा।
★ पृथ्वी पर लगभग प्रत्येक वर्ष १००० टन अंतरिक्ष धूल-कण प्रवेश करते हैं।
★ पृथ्वी अपने अक्ष के सापेक्ष घूमती हैं जिसके कारण ही यह चुम्बक की तरह व्यवहार करती हैं।
पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव इसके चुंबकीय क्षेत्र का दक्षिणी पासा हैं, जबकि दक्षिणी ध्रुव इसके चुंबकीय क्षेत्र का उत्तरी पासा हैं।
पृथ्वी पर मानवता की उपस्थिति
यह माना जाता है कि धरती पर मनुष्य प्रजाति के जीवन की शुरूआत प्रारंभिक हिमयुग से हुई, जब बैल, हाथी और घोड़े का भी जन्म हुआ। किंतु अब यह प्रतीत होता है कि यह घटना लगभग 26 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में घटित हुई होगी।
प्रारंभिक मानवों के जीवाश्म भारत में नहीं पाये गये हैं। प्रारम्भिक मानव की उपस्थिति का एक संकेत पत्थर के औजारों से प्राप्त होता है जो द्वितीय हिमाच्छादन में जमा किये हुए माने जा सकते है, जो लगभग 2,50,000 ई.पू. पुराने माने जाते हैं। हालांकि बोरी (महाराष्ट्र) से हाल में प्राप्त कलाकृतियों से ज्ञात होता है कि प्रारंभिक मनुष्य का उदय 1.4 मिलियन वर्षों पूर्व हुआ था। वर्तमान में ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में सभ्यता का विकास अफ्रीका के पश्चात हुआ, यद्यपि उपमहाद्वीप की चट्टानी प्रौद्योगिकी का विकास भी उसी तरह हुआ था जैसा कि अफ्रीका में। भारत में प्रारंभिक मानव पत्थर से बने नुकीले हथियारों का उपयोग करते थे; जो सिंधु, गंगा, यमुना नदी के जलोढ़ मैदानों को छोड़कर लगभग सारे भारत में पाये गये हैं। पत्थर से बने नुकीले हथियार और नुकीले कंकर शिकार और काटने के अतिरिक्त भी कई उद्देश्यों से उपयोग में लाये जाते थे। इस दौर में मनुष्य केवल शिकार पर जीता था और उसे अपने भोजन को संग्रहित करने का संघर्ष करना पड़ता था। उसके पास कृषि और भवन निर्माण का भी ज्ञान नहीं था। सामान्यत यह माना जाता है कि यह चरण 9000 ई.पू. तक जारी रहा।
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