वोट क्यों दें और किस दें?
नमस्कार मैं आशीष पांडेय और आज चर्चा करेंगे लोकसभा चुनाव को लेकर। कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे-
रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, रोजगार,आबादी और महंगाई पर क्रमशः चर्चा करेंगे।
पूरा वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें।
जैसा कि आप जानते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर सूचनाएं जारी हो चुकी हैं। आदर्श आचार्य संहिता भी लग गया है और और कट्टर ईमानदार और कट्टर समाजसेवी नेताओं के दल तथा विचारधारा बदलने का कार्यक्रम भी शुरू हो गया है। ऐसे में हमारा और आपका सोचने का यह कर्तव्य तो जरूर बनता है कि जो आदमी 5 साल एक पार्टी में नहीं रह सकता एक विचारधारा का नहीं रह सकता वह आपका कैसे हो सकता है। यह जो हर-चार दिन पर पार्टी बदलने वाले नेता हैं। यह आपके लिए नहीं अपने विकास के लिए पार्टी बदलते हैं। इनको न ही अपने और न ही आपके सिद्धांतों, विचारधारा और नैतिक मूल्यो से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है। हां इनको लेना-देना है तो बस आपकी और अपनी जाति से क्योंकि जब यह 5 साल के बाद फिर चुनाव में आते हैं तो यह अपनी जाति और आपकी जाति का मिलान करना शुरू कर देते हैं क्योंकि नेताओ पता है कि इनका विकास आपकी और उनकी जाति के मिलान करने से ही होगा और और हद तो तब हो जाती है कि जब यही नेता जाति जनगणना कराकर जातिवाद खत्म करने की बात करते हैं। यह कहते हैं की जाति जनगणना करने से जाति का विकास होगा लेकिन आजादी के बाद वर्षों से चली आ रही मानव जनगणना करने से अब तक मानवता का विकास क्यों नहीं हो सका। और बड़ी समस्या तो यह है कि उनके साथ हम लोग भी बखूबी उनका साथ निभाते हैं। हम भी जब वोट करने जाते हैं तो सर्वप्रथम अपनी जाति का नेता चुनते हैं फिर वही नेता चुनकर संसद जाता है और 5 साल के लिए अपनी जाति के हिस्सेदारी की मलाई निकाल कर आराम से कुंभकरण की निद्रा में सो जाता है। दोस्तों हर चुनाव में अब तक जो पारंपरिक मुद्दा रहा करता था वह था बिजली, पानी, सड़क, रोटी, कपड़ा, और मकान। वर्तमान कि भाजपा सरकार ने वास्तव में इस मुद्दे पर काफी गंभीरतापूर्वक पहल किया। सौभाग्य योजना से बिजली, हर घर जल योजना से पानी, प्रधानमंत्री सड़क योजना से सड़क, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत रोटी और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान दिया गया। हो सकता है कुछ लोग अभी भी इससे वंचित हो। फिर इसके बाद इन मूलभूत आवश्यकताओं के बाद दो मुद्दे और जुड़े वह है शिक्षा और रोजगार। शिक्षा को लेकर पहले की सरकार और वर्तमान सरकार भी तरह-तरह की योजनाएं चल रही है लेकिन इस पर खास कोई असर देखने को नहीं मिल रहा फिर भी पहले की अपेक्षा अच्छी प्रगति देखने को मिल रही है। शिक्षा के क्षेत्र में विद्यालय का निर्माण हो या पुनर्निर्माण हो या उनका नवीनीकरण हो इन सब क्षेत्र में स्थिति संतोषजनक है। अब बात करते हैं रोजगार की, पहली बात की हमारी जो मानसिकता है कि रोजगार का अर्थ है सरकारी नौकरी। जो कि सरासर गलत है यह तो कतई संभव नहीं है की इतनी तेजी से बढ़ती देश की आबादी में सबको सरकारी नौकरी प्रदान की जा सके। तो फिर युवाओं का रुख निजी क्षेत्र की तरह बढ़ता है। इधर भी अच्छा भविष्य है अगर देश में डेवलपमेंट की काम हो रहे हैं तो रोजगार का सृजन अपने आप होगा, निजी क्षेत्र में खासकर के। लेकिन कब तक होगा क्योंकि आधुनिकरण के समय में जिस तरह से यांत्रिक शक्तियां अपना सभी क्षेत्रों में दबदबा बना रही हैं। क्या यह संभव है कि आने वाले दिनों में भी मानव समाज को उतना ही रोजगार मिलने की संभावना है। तो नहीं क्योंकि आने वाले दिनों में तकनीक का इतना ज्यादा उपयोग होने वाला है कि अधिकतर रोजगार खतरे में पड़ जाएंगे। 100 आदमियों के काम एक मशीन 10 मिनट में कर देगी तो कोई भी संस्था आपको अपने पास क्यों रखेगी। तो इन सब से बचने के लिए लोगों को अपना खुद का उद्यम शुरू करने के लिए आगे आना ही पड़ेगा। इसके लिए सरकार खास करके जोर दे रही है। तरह-तरह की योजनाएं चला रही है कि लोग खुद के उद्यम शुरू करना शुरू कर दें। किंतु अभी थोड़ा समय तो जरूर लगेगा। लेकिन इसके बाद बेरोजगारी के महत्वपूर्ण समस्या देश में बहुत तेजी से बढ़ती आबादी। हम दुनिया में प्रथम स्थान पर हैं आबादी के मामले में, और समय के साथ जन्म लेने वालों में से सबसे मुख्य मुद्दा है बेलगाम जनसंख्या वृद्धि। यह ठीक उसी तरह है जैसे पेट में कब्ज बन जाए तो सैकड़ो बीमारियों को जन्म देता है। इस तरह से अगर जनसंख्या को नियंत्रित न किया जाए तो यह हजारों समस्याएं पैदा करेगा। क्योंकि आबादी बढ़ेगी तो संसाधनों का उपयोग बढ़ेगा। जो संसाधन सीमित है उनकी मांग अधिक बढ़ने की वजह से महंगाई का जन्म होगा। जब महंगाई पड़ेगी तो आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिक धन की जरूरत पड़ेगी। अधिक धन की पूर्ति के लिए अपराध बढ़ेगा और अपराध बढ़ेगा तो कानून व्यवस्था बिगड़ेगी। जब कानून व्यवस्था बिगड़ेगी तो अस्थिरता पैदा होगी। तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनावश्यक संकटों का सामना करना पड़ सकता है। दुनिया में भारत का आबादी के क्षेत्र में प्रथम स्थान हासिल करना वास्त में चिंता का विषय है। सरकार और कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि भारत आबादी ज्यादा होने की वजह से एक बड़ा बाजार बन चुका है। जो कि देश के लिए फायदेमंद है लेकिन चिंता इस बात को लेकर है कि यह बाजार कब तक व्यवहार में रहेगा। एक समय ऐसा आएगा जब चीज नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे तो इसका बहुत बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ेगा। वर्तमान सरकार के द्वारा जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बात पहले से की जा चुकी है लेकिन अब तक इस पर कुछ खास पहल देखने को नहीं मिली। अगर इस मुद्दे को इस वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रमुखता दी जाए तो बहुत ही संतोषजनक रहेगा। नहीं तो इस बार का चुनाव भी केवल धर्मवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद और भाषावाद तक सिमट कर रह जाएगा और हम फिर अगले 5 साल का इंतजार करते रह जाएंगे। दोस्तों हमारा अगला मुद्दा है महंगाई पर अब बात करेंगे। महंगाई को लेकर जाहिर सी बात है की आबादी बढ़ेगी तो महंगाई बढ़ेगी। इसमें कोई दो राय नहीं है चाहे कोई भी सरकार हो इसे रोक नहीं सकती। लेकिन इसका मुख्य कारण और भी है। अभी हाल ही में हमने एक बहुत बड़े मुद्दे का सामना किया था उसका नाम है इलेक्टोरल बांड पहले जानते हैं कि इलेक्टोरल बांड है क्या इलेक्टोरल बांड को हिंदी में चुनावी बंध पत्र कहते हैं। यह एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ की श्रेणी में मिलता है। यह स्टेट बैंक से मिलता है और कोई भी व्यक्ति खरीद सकता है। आपने देखा होगा जो न्यायालय में स्टांप मिलता है स्टांप का मूल्य निर्धारित होता है। ठीक उसी तरह यह भी होता है और इसको खरीदने के 15 दिन के अंदर खरीदने वाला व्यक्ति किसी भी चुनावी पार्टी को दे सकता है और यह जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में बिकता है। तो यानी इन महीना के 15 दिन के अंदर उसे खरीदने के बाद किसी न किसी पार्टी को देना होगा ही नहीं तो यह अवैध जाएगा। दोस्तों 2017 में सरकार ने इसकी घोषणा की थी और 2018 में इस कानून को लागू कर दिया गया और उस समय संसद में उपस्थित सभी सदस्यों ने इसका समर्थन किया चाहे वह किसी भी पार्टी क्यों क्योंकि सबको इससे लाभ था। चुनाव के दौरान सभी पार्टियों के पैसे खर्च होते हैं। चुनावी सभा के लिए , रैलिया के लिए तो उनके लिए कंपनियां चंदा देती है। जिससे सभी पार्टियों को लाभ था। तो इसलिए किसी ने विरोध नहीं किया। सरकार और बाकी सभी पार्टियों का कहना था कि इसके माध्यम से जो अवैध पैसा है वह चंदा के रूप में पार्टियों को देना बंद हो जाएगा और जो भी कंपनी चंदा देगी वह चंदा वैद्य रूप से पार्टियों को जाएगा। क्योंकि 2018 से पहले का बैंकों के पास और सरकारों के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है कि किस पार्टी को किस कंपनी ने कितना चंदा दिया। क्योंकि 2014 से पहले ज्यादातर समय कांग्रेस ही शासन में रही लेकिन उसने अभी तक एक भी रुपए का हिसाब नहीं दिया कि उसे किस कंपनी ने कितना चंदा दिया। लेकिन यह कानून बनने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर सुनवाई भी चल रही थी। जिस पर सुनवाई अब जाकर पूरी हुई। अब आते हैं मुख्य बात पर सत्ता में चाहे जो भी पार्टी रहेगी उसको चंदा ज्यादा से ज्यादा ही मिलेगा। यह तो शत प्रतिशत सत्य है चाहे बीजेपी हो, सपा हो, बसपा हो, कांग्रेस हो कोई भी पार्टी हो क्योंकि चंदा की मलाई सब ने खाई है। लेकिन भाजपा को छोड़कर बाकी पार्टियों का दुख यह है कि भाजपा को लगभग 6000 करोड़ का चंदा क्यों मिला। तो भाजपा का साफ जवाब है कि भाजपा केंद्र में भी सरकार में है लगभग 18 से 20 राज्यों में भी सरकार में है तो जाहिर सी बात है उसको ज्यादा मिलेगा और यही ही वह दुख है जो बाकी पार्टियों को जीने नहीं दे रहा है। लेकिन वहीं विपक्षी पार्टी अपने गठबंधन के साथियों के बारे में कुछ नहीं बता रही हैं। जैसे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 1609 करोड़ का चंदा मिला। जबकि उसकी सरकार केवल एक ही राज्य पश्चिम बंगाल में है। कांग्रेस को 1400 करोड़ का, BRS को 1214 करोड़ का, तो BJD को 775 करोड़, DMK को 639 करोड़ का, YSRCP को 382 करोड़ का चंदा मिला और इतना ही नहीं देश की सभी पार्टियों को चंदा मिला है। चाहे वह सपा हो, आम आदमी पार्टी हो, RJD, JDU हो। देश की एक दो पार्टी ऐसी भी है जिन्हें एक भी रुपया चंदा नहीं मिला है। तो उसका भी कुछ नियम है कि चंदा इ
उस पार्टी को मिलेगा जो पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में मिले सभी वोटो का एक प्रतिशत वोट प्राप्त किया हो। उम्मीद है आपने इलेक्टोरल बाण्ड के बारे में अच्छे से समझा होगा। लेकिन इस पूरे इलेक्टोरल बांड का निचोड़ यह है कि इसका असर महंगाई पर जबरदस्त पड़ने वाला है क्योंकि जो कंपनी इतने रुपए चंदा के रूप में पार्टियों को दे रहे हैं तो वह इनकी भरपाई कहां से करेगी। तो इसका स्पष्ट मतलब है कि वह आम जनता की जेब पर डाका डालने की पूरी कोशिश करेंगे और जो कि अब तक होता आ रहा है और होता रहेगा। तो अगर महंगाई की बात करें तो कोई भी सरकार आए महंगाई कम होने का नाम नहीं लगी। नहीं तो कोई भी पार्टी आकर बोले कि मेरी सरकार आएगी तो मैं 2014 से पहले जो भी वस्तुओं के मूल्य थे वही लागू करूंगा पर ऐसा बोलने वाला कोई नहीं है। क्योंकि यह कड़वा सत्य है कि आने वाले समय में महंगाई और भी बढ़ेगी चाहे सरकार किसी की भी हो क्योंकि आबादी बढ़ेगी तो उपभोग बढ़ेगा उपभोग पड़ेगा तो सीमित संसाधनों की मांग बढ़ेगी और मांग बढ़ेगी तो महंगाई भी बढ़ेगी।
धन्यवाद आप लोगों ने यहां तक आया और मुझे सुना लेकिन आप लोगों को एक बार फिर कहना चाहूंगा कि वोट देने से पहले, बटन दबाने से पहले एक बार जरूर सोचिएगा जाति धर्म से ऊपर जाकर सोचिएगा कि आप वोट किसी दे रहे हैं और क्यों दे रहे हैं?
Comments
Post a Comment
Fallow please