किसान की अवधारणा

गाज़ीपुर टुडे न्यूज

दुनिया कहती है दुनिया बाजार हैं और भारत कहता हैं दुनिया परिवार हैं।


यह कटु सत्य है कि बाजार से व्यापार हैं और व्यापार से परिवार हैं और इस बाजार परिवार के बीच यात्रा है जीवन। पर क्या हमने कभी सोचा कि इस बाजार और परिवार के बीच मानव सभ्यता में सभी वर्गों का कहीं ना कहीं स्थान है किंतु एकमात्र ऐसा वर्ग है किसान जिसके स्थान की कोई अवधारणा नहीं है कि इसका समाज में स्थान कहां है? किसी फिल्म में एक डायलॉग है कि आने वाले समय में दुनिया को दो ही ताकते चलाएंगी- पहला उद्योगपति और दूसरा राजनेता लेकिन क्या उद्योग और राजनीति के बीच की जो गहरी खाई हैं बिना किसान के भरी जा सकती हैं। तो उसमे मेरा जवाब होगा- नहीं, ऐसी स्थिति में सवाल बनता है कि राजनीति और उद्योग इतना मूल्यवान है तो उनके बीच संबंध बनाने वाला किसान का मूल्य परिभाषित क्यों नहीं किया गया? 

कुछ विद्वान मित्र इस पर व्याख्या करते हैं कि किसान का मूल्य अमूल्य है पर मैं उन मित्रों को बताना चाहूंगा कि यह केवल लिखने की बातें हैं। समय का मांग यह है कि अब किसान के मूल्य का भी निर्धारण किया जाना चाहिए। दुनिया में बिकने वाली सभी चीजें सुई से लेकर जहाज तक सब के मूल्य का निर्धारण वही करता है जिस पर उसका मालिकाना हक होता है। किंतु एकमात्र किसान है जिसके फसलों के मूल्य का निर्धारण सरकार करती है। क्या? एक मूल्यांकन ऐसा नहीं करना चाहिए कि जिससे किसान अपने फसलों के मूल्य का निर्धारण कर सकें। अगर सरकार किसान के फसलों के मूल्य का निर्धारण कर रही है तो सरकार की जिम्मेदारी बननी चाहिए कि किसान की फसल किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा से बर्बाद होती है तो सरकार को तुरंत उसका मूल्य निर्धारण कर किसान को उसका मुआवजा देना चाहिए। कुछ ऐसी व्यवस्थाएं हैं किंतु कागज पर हैं। जो किसान के पास आते आते शुन्य हो जाती हैं। क्योंकि व्यवस्था इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि योजनाएं इन व्यवस्थाओं के जाल में फस कर दम घोट देती हैं और किसानों तक पहुंचती है तो बस घोषणाएं। मौसम की मार से पूरी मानव सभ्यता जहां घुटने टेक देती है वही किसान पर्वत की तरह सीना  ताने खड़ा रहता है। वह कहता है कि- जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं। जिस ठंड के मौसम में लोग घरों में गर्म बिस्तर में सो कर सोशल मीडिया पर किसानों की दुर्दशा की बात करते हैं। उस समय वह किसान कड़कड़ाती ठंड में अपनी फसलों के साथ उनका साथ निभाता हूं क्योंकि वह किसान है। किसान एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसकी याद तब आती है जब वह आत्महत्या करता है या चुनाव होता है। उस समय बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं और लॉलीपॉप थमा दिए जाते हैं और किसानों की ऐसी दुर्दशा का जिम्मेदार राजनेताओं से ज्यादा है वह किसान नेता हैं जो किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के चाटुकार बनकर  राजशाही मलाई खा रहे हैं। जो चुनाव आते ही सक्रिय हो जाते हैं और चुनाव बीतने के बाद कुंभकरण की नींद सो जाते हैं। फिर उन्हे अगले चुनाव में राजशाही मलाई की लालच देकर जगा दिया जाता है।  बीते कुछ दिनों से हो रही बारिश और बर्फबारी से किसानों की फसलों को बहुत नुकसान पहुंचा। 


जिससे हृदय बहुत व्यथित हुआ और इस लेख के अंत तक आपको आना पड़ा और बड़े विक्षिप्त मनसे कहना पड़ता है कि हमें ऐसी लेख लिखने की जरूरत क्यों पड़ती? कुछ ऐसे नई व्यवस्थाओं का जन्म देना बहुत जरूरी है। जिसका परिणाम यह हो कि आने वाले समय में जब सिनेमा के डायलॉग लिखे जाए तो उसमें लिखे जाएं कि आने वाले समय में दुनिया को एक ही ताकत चलाएगी और वह है किसान।

धन्यवाद!
✍️ आशीष पांडेय "आशु"


आप भी अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर प्रेषित करें

Comments

Popular posts from this blog

2 अक्टूबर से शुरू होगी चकिया की रामलीला

Exclusive रिपोर्ट | 2025 भारत-पाक युद्ध: क्या ट्रंप ने सच में युद्ध रुकवाया? सच्चाई चौंकाने वाली है

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव का बजा बिगुल, तैयारी की अधिसूचना जारी